फादर्स डे - संदीप सृजन

फादर्स डे पर ...

सारी दुनिया से बडा,पिता का बाहुपाश ।
दो हाथो के सामने, छोटा है आकाश ।।

बदल गई है जिंदगी, पापा की इक बात।
स्वाभिमान की सीख है,बहुत बडी सौगात ।।

अनुभव अपने दे दिए, और दिया मधुमास।
हर कदम पर  पिता बने , संबल औ' विश्वास ।।

जिनकी आंखों मे छुपा, कुछ गुस्सा कुछ प्यार ।
पर पापा के हृदय मे,  प्यार, प्यार बस प्यार।।

इक छोटी सी बात पर, जब मै हुआ अधीर ।
हाथ पकड़ कर पिता ने, हर  ली सारी पीर।।

मुझ पर न्यौछावर करी ,अनुभव की सौगात ।
पापा के आशीष से, हुई कहीं ना मात।।

@संदीप सृजन




टेलीग्राम की बिदाई - संदीप सृजन

15 जुलाई 2013 भारत मे टेलीग्राम का अंतिम दिन  है.....आज से एक महिने बाद होने वाली तार की बिदाई मे कुछ दोहे...

सुख दुख मे आगे रहा, उसका इक संदेश ।
वो जाएगा छोड कर, अपना भारत देश।।

खुशियों की बरसात मे, खोलेंगे जब द्वार।
चिठ्ठी -पत्री सब मिले,नही मिलेगा  तार।।

गम के आंसू पोछने,आयी कई बयार।
पर नैनो की  आस है, आये कोई तार।।

@संदीप सृजन

आडवाणी जी के मन के भाव dy संदीप सृजन

आडवाणी जी के मन के भाव
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हिंदी ग़ज़ल के युग पुरूष  श्रद्धेय
स्व.दुष्यंत कुमार जी से क्षमा सहीत ...
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वो मेरा पत्र मीडिया मे जा दुहरा हुआ होगा।
मैरा इस्तिफा नही था ,उन्हे धोखा हुआ होगा।।

यहाँ तक आते-आते बडा  बूढा हो गया हूँ मै।
किसी पद की चाह मे मेरा  मन भटका हुआ होगा।।

समझ मुझे भी है मेरी बिदाई की आहट आ रही ।
सब के सब परेशां है इस बूढे को क्या हुआ होगा।।

अपने पक्ष मे शोर सुनना किसे अच्छा नही लगता।
पर सब सिधा हो जाएगा जितना बांका हुआ होगा ।।

मुझसे नही रहा जाता है गुंगा और बहरा बन ।
कैसे सहलू सत्ता मे किसी का जलसा हुआ होगा।।
@संदीप सृजन

मुक्तक - संदीप सृजन

मुक्तक

बुराई मे अच्छाई की तलाश किजिए
अंत:करण से ही सदा विश्वास किजिए
तुमको मिलेगें लोग कई इस जहान मे
जीवन मे किसी का भी न उपहास किजिए

@संदीप सृजन

बरसात के दोहे- संदीप सृजन

सारे दिन चलता रहा,बूँदों का व्यापार ।
सूद धरा को मिल गया, बाकी रहा उधार ।।

उमड़-घुमड़ घन छा रहे, कामुक हुई बयार ।
बूँदों की रस धार ले, नभ से बरसा प्यार ।।
@संदीप सृजन

विश्व पर्यावरण दिवस पर दोहे

विश्व पर्यावरण दिवस पर .....
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हरी भरी धरती  रहे, हर आँगन हो फूल।
गुलमोहर की छांव  मे, जीवन हो अनुकूल ।।

इमली,केरी,आवला , रायण,बेर खजूर ।
जब तक आँगन मे रहे,खुशियाँ  थी भरपूर ।।
@संदीप सृजन

मुक्तक - संदीप सृजन

सितारो से भरे फलक मे महताब लगती हो
दिल को सुकूं दे वो फज़र का ख्वाब लगती हो 
क्या तुम्हारा रूप और क्या तुम्हारे जलवे
उम्र के इस दौर मे भी लाजवाब लगती हो 
@संदीप सृजन

संदीप 'सृजन ' - एक परिचय

युवा कलमकार संदीप 'सृजन' वर्तमान समय के एक उभरते रचनाधर्मी है, 5 जुलाई 1980 को जन्मे सृजन 1994 से पत्रकारिता और लेखन के श्रेत्र मे सक्रिय है,प्रारम्भिक दौर मे सामाजिक पत्र पत्रिकाओं से आपके लेखन की शुरुआत हुई । विभिन्न समाचार पत्रों मे संवाददाता के रूप  मे  लम्बे समय तक अपनी सेवाएं आपने दी है, जैन समाज के पाक्षिक वर्धमान वाणी समाचार पत्र के सह संपादक (1999-2000) रहे । दैनिक अक्षर विश्व के साहित्य संपादक (2005-06) भी रहे, 2008 से शब्द प्रवाह पत्रिका के संपादक है।जो की कविता, लघुकथा और व्यंग्य को समर्पित है । सम सामयिक और गंभीर लेखन के प्रति आपका अधिक रूझान रहा है । साहित्य की हरेक विधा मे दखल रखते है इसीलिए  आपके लेख देश के प्रतिष्ठत समाचारपत्रों, पत्रिकाओं मे नियमित रूप से प्रकाशित होते रहते है। नईदुनिया, पंजाब केसरी, नव दुनिया, सरिता, सुमन सौरभ, मुक्ता, सरस सलिल,गृह शोभा, बिंदियाँ, शुक्रवार,उत्तर प्रदेश, हरिगंधा,फार्म एण्ड फूड, लाईफ पाजिटीव, गृह लक्ष्मी, साधना पथ, तंत्र ज्योतिष, वीणा,राष्ट्र धर्म, समाज कल्याण,स्वदेश,लफ्ज़,  वेब दुनिया, स्वर्ग विभा (वेब साईड)आदी कई उल्लेखनीय पत्र पत्रिकाओं मे आपकी कविताओं, व्यंग्यो ,कहानियों, आलेखो को ससम्मान स्थान दिया गया है । दूरदर्शन, ई टी वी और आकाशवाणी से भी आपकी रचनाएँ प्रसारित हो चुकी है। इश्तहार नाम से आपकी  व्यंग्य क्षणिकाओ की एक पुस्तिका तथा नेशनल बुक ट्रस्ट नई दिल्ली द्वारा आपकी एक पुस्तक  गाँव की बेटी का प्रकाशन किया गया है। यह पुस्तक भारत सरकार के साक्षरता मिशन के अंतर्गत प्रकाशित हुई है। पत्रकारिता और साहित्य सेवा के लिए कई सम्मानो से भी आपको सम्मानित किया जा चुका है।
सम्पर्क -
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मुक्त - संदीप सृजन

बदली हुई नजरों से मेरा गाँव देखिए।
शहरो से जो मिला है वो बदलाव देखिए।
इंसानियत से उठ गया इंसा का वास्ता ।
मन मे आते छल कपट और दाव देखिए।
@संदीप सृजन