हिंदी के अच्छे दिनों की शुरूआत

हिंदी के अच्छे दिनों की शुरूआत
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आजाद भारत में 67 सालों में जितने भी प्रधानमंत्री हुए उनमें से अधिकांश ने  अंग्रेजी मे अपना काम करना और अंग्रेजी में बात करना ही अपनी शान समझा, हिंदी को केवल 15 अगस्त पर लाल किले पर संबोधन के लिए उपयोग किया , अधिकारी और उच्चसेवा में कार्यरत कर्मचारियों ने आम आदमी पर धाक जमाने के लिए अपने कामकाज और व्यवहार की भाषा के रूप में अंग्रेजी को अपनाया और हिंदी को निम्न स्तर की भाषा सिद्ध किया और हिंदी को हाशिये पर ला कर खड़ा करने को पुरजोर प्रयास किया । हिंदी की जितनी दुर्दशा ये लोग कर सकते थे इन्होने की ।यही वजह रही है हर कोई अपने बच्चे को और कुछ सीखा पाए  , पढ़ा पाए या नही पर कांवेंट स्कूल में भेजने और बच्चे को अंग्रेजी पढ़ाकर अपना सुखद भविष्य देखने लगा है ।

हिंदी के ऐसे दुखद समय में नई सरकार  और नये प्रधानमंत्री के आते ही हिंदी की दशा सुधरने के आसार नजर आने लगे है । नई सरकार के गठन के दौरान सर्वाधिक मंत्रियों ने हिंदी में शपथ ग्रहण की, कबिना मंत्रियों की बैठक में हिंदी में चर्चा हुई, विभिन्न मंत्रालयों के सचिवों की बैठक में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिंदी में बातें करी और हिंदी में ही अधिकारियों ने जवाब दिए । और सुखद तब हुआ जब सार्क देश के सभी प्रमुखों से हिंदी में चर्चा की गई। हाल ही अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अमेरिका आमंत्रित किया है, इस दौरान भी भारत के प्रधानमंत्री सिर्फ हिंदी में ही बात करेंगे भाषाई समस्या के लिए दुभाषिये की मदद ली जाएगी । प्रधानमंत्री का हिंदी प्रति यह सम्मान गौरव की बात है आजादी के 67 साल बाद हिंदी को अपने घर में ही नही बाहर भी सम्मानित किया जा रहा है,  राष्ट्रभाषा  संघर्ष समिति, राजभाषा संघर्ष समिति और भी कई ऐसी नागरिक समितिया जिनके प्रयासो का अब पूरे होने के दिन आ गये है ।सच में हिंदी के लिए तो अच्छे दिन आने वाले है ऐसा लगने लगा है ।

चाणक्य ने कहा भी है "यथा राजा तथा प्रजा "भारत के प्रधानमंत्री हर जगह हिंदी का प्रयोग करेंगे को उनके मातहत भी अपना काम हिंदी में करेंगे , उसी का अनुसरण देशवासी भी करेंगे ।उम्मीद की जा सकती है कि ऊपर  से शुरूआत हुई है तो निचे तक जल्दी सुधार  होगा । बैंक, कोर्ट कचहरी,शिक्षा , चिकित्सा के क्षेत्र में में क्षेत्रीय भाषा और हिंदी को बढावा मिलने के आसार अब स्पस्ट नजर आने लगे है जो सुखद है ।हिंदी के लिए सभी मंत्रालयों में हिंदी सलाहकार समितियां बनी हुई है जो 67 सालों से सिर्फ कागजी लिपा पोती कर रही थी अब अपने वास्तविक रूप में खुलकर काम कर सकेगी ।
और हिंदी के लिए अच्छे दिन आएँगे ।हिंदी अपना खोया हुआ सम्मान पुनः प्राप्त करेगी ऐसा विश्वास है ।

@संदीप सृजन
संपादक -शब्द प्रवाह
sandipsrijan999@gmail.com

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