सरस्वती वंदना दोहे
हे वाणी वरदायिनी, करिए हृदय निवास
नवल सृजन की कामना, यही सृजन की आस
मात शारदा उर बसो, धरकर सम्यक रूप
सत्य सृजन करता रहूँ, ले
कर भाव अनूप
सरस्वती के नाम से,कलुष
भाव हो अंत
शब्द सृजन होवे सरस, रसना हो रसवंत
वीणापाणि माँ मुझको ,दे दो
यह वरदान
कलम सृजन जब भी करे, करे लक्ष्य संधान
वास करो वागेश्वरी, जिव्हा
के आधार
शब्द सृजन हो जब झरे, विस्मित हो संसार
हे भव तारक भारती, वर दे सम्यक ज्ञान
नित्य सृजन करते हुए, रचे दिव्य अभिधान
भाव विमल विमला करो, हो
निर्मल मति ज्ञान
विंध्यवासिनी दीजिए ,शुभ
श्रुति का वरदान
महाविद्या सुरपुजिता, अवधि
ज्ञान स्वरूप
शुभ्र करो श्वेताम्बरी ,मन:पर्यव
प्रकाश
शुभदा केवल ज्ञान से, करे जगत कल्याण
सृजन करे गति पंचमी, पाए पद निर्वाण
विनम्र
संदीप सृजन
shashwatsrijan111@gmail.com
shashwatsrijan111@gmail.com