होली की हुड़दंग में

होली की हुड़दंग में


होली की हुड़दंग मेंझूम सृजन के संग ।
फागुन बिखराने लगा, होली वाले रंग ।।

होली की हुड़दंग में, रंग, अबीर, गुलाल ।
मुख पर छा इठला रहे, करने लगे धमाल ।।

होली की हुड़दंग मेंमन भायी जब  भंग ।
वासंती होने लगाजीवन का हर रंग ।।

होली की हुड़दंग में, गाया जब से फाग ।
तन मन से झरने लगी , टेसू वाली आग ।।

होली की हुड़दंग मेंकच्चे पक्के रंग ।
मर्यादा को तोड़ कर, करदेते है संग ।।

होली के हुड़दंग मेंमांदल वाली थाप ।
कदमों में थिरकन भरे, दे यौवन को ताप ।।

होली की हुड़दंग मेंशहर हुए तब्दील ।
गॉवों पर रंगत चड़ीहुई गुलाबी झील ।।

होली की हुड़दंग मेंऐसा हुआ कमाल ।
कहते थे सुंदर जिसेहै वे सुंदरलाल ।।

होली की हुड़दंग में , सभी हुए है भांड ।
भेद भाव को भूल कर, बांट रहे है खांड ।।

होली की हुड़दंग में, मत कर खोटी बात ।
प्रेम रंग में डूबकर,बांट सृजन सौगात।।

होली की हुड़दंग में, संज्ञा हुई अनाम ।
सर्वनाम के साथ लग, है उपमा बदनाम ।।


होली की हुड़दंग में, है थिगड़े पैबंद ।

लेकिन होते सृजन यहीं, मुस्कानों के छंद।।
-संदीप सृजन
सम्पादक - शब्द प्रवाह
ए/99 वी. डी. मार्केट , उज्जैन 
456006 (म.प्र.)

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