लक्ष्य संधान

व्यंग्य:
लक्ष्य संधान

प्रदेश की बड़ी पंचायत के चुनाव की तैयारी का बिगुल बजते ही प्रतिष्ठित राजनीतिक दलों की तैयारी प्रारंभ हो गई। विभिन्न क्षेत्रों से हजारों उम्मीदवारों के आवेदन चुनाव लड़ने के लिए पार्टी कार्यालय में जमा होने लगे थे। पार्टी के वरिष्ठजनों को इन आवेदनों के आधार पर टिकट बांटने थे,लेकिन काम इतना आसान नहीं था। आखिरकार सभी आवेदकों को उनके जिला मुख्यालयों पर बुलाया गया और परीक्षा देने के लिए कहा गया,सभी उम्मीदवार परीक्षा देने को तैयार थे।
एक जिले में पार्टी के वरिष्ठ कार्यकारिणी सदस्य आधुनिक द्रोणाचार्य के रूप में एक बंद कमरे में एक-एक करके चुनाव लड़ने की इच्छा लिए आए उम्मीदवारों को बुलाने लगे और उनसे सिर्फ एक प्रश्न पूछने लगे-तुम चुनाव क्यों लड़ना चाहते हो ?
भावी उम्मीदवारों में एक ने कहा- जनता की सेवा के लिए।
फिर दूसरे को बुलाया और द्रोणाचार्य ने वही प्रश्न दोहराया।
दूसरे ने कहा-जनता को सुविधाएं उपलब्ध करवाने के लिए। फिर तीसरे, चौथे,पांचवें याने जितने भी उम्मीद लेकर आए थे,सभी से एक ही प्रश्न पूछा गया। सबने अपने-अपने विवेक का उपयोग कर जवाब दिया,जैसे-
तीसरे ने कहा-सामाजिक भेदभाव खत्म करने के लिए। चौथे ने कहा-अपनी पार्टी को मजबूत करने के लिए। पांचवे ने कहा-भूख,भय और भ्रष्टाचार खत्म करने के लिए।
छठे ने कहा-समाजोत्थान व राष्ट्रोत्थान के लिए।
सातवें ने कहा-बदमाश और बेईमानों से शहर को मुक्ति दिलाने के लिए।
आठवें ने कहा-प्रतिद्वंदी पार्टी के उम्मीदवारों को हराने के लिए।
इस तरह के जवाब देते हुए जब करीब पच्चीस लोग कमरे से बाहर आ चुके थे। तभी आखरी उम्मीदवार के रूप में शहर समाजसेवी के रूप में पहचान रखने वाले स्पष्ट वक्ता श्रीमान आधुनिक अर्जुन कमरे में गए। बंद कमरे में बैठे आधुनिक द्रोण ने उनसे भी यही सवाल किया-तुम चुनाव क्यों लड़ना चाहते हो ?
श्रीमान आधुनिक अर्जुन निर्भीक होकर साथ में लाएं मुद्रा से भरा बेग खोलकर आधुनिक द्रोण के समक्ष रखते हैं और कहते हैं-गुड़ खिलाकर शक्कर खाने के लिए।
यह सुनकर आधुनिक द्रोणाचार्य मुस्कुरा देते हैं और श्रीमान आधुनिक अर्जुन कमरे से बाहर आ जाते हैं। द्रोणाचार्य बने पार्टी के वरिष्ठ पूरी रिपोर्ट बंद कमरे में तैयार करके पार्टी मुख्यालय भेजते हैं। पार्टी अध्यक्ष आगामी चुनाव के लिए श्रीमान आधुनिक अर्जुन को पार्टी का अधिकृत प्रतिनिधि घोषित कर देते हैं। चुनाव होता है श्रीमान आधुनिक अर्जुन गुड़ बांटकर चुनाव जीत जाते हैं और महा पंचायत में पहुंचकर शकर खाने में व्यस्त हो जाते हैं। अर्थात सही लक्ष्य साधकर लक्ष्य संसाधन करने लग जाते हैं।

#संदीप सृजन
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456006 (म.प्र.)
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राजनेता से पहले कवि और पत्रकार थे अटल जी


राजनेता से पहले कवि और पत्रकार थे अटल जी
-संदीप सृजन

सात दशक की भारतीय राजनीति में कुछ ही ऐसे प्रखर वक्ता और राष्ट्रहित चिंतक हुए है जिनका मुकाबला आने वाले समय में शायद ही कोई कर पाएगा। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी एक ऐसे ही व्यक्तित्व थे,जिनका कोई पर्याय नहीं हो सकता ।देश-विदेश में अटल जी की भाषण शैली इतनी प्रसिद्ध रही है कि उनका आज भी भारतीय राजनीति में डंका बजता है। वाजपेयी जी जब जनसभा या संसद में बोलने खड़े होते तो उनके समर्थक और विरोधी दोनों ही उन्हें सुनना पसंद करते थे। अटल जी को न केवल एक कुशल राजनीतिज्ञ और प्रशासक के रूप में जाना जाता है, बल्कि वाजपेयी जी की पहचान एक प्रख्यात कवि, पत्रकार और लेखक की भी रही है।
1942 में छात्र राजनीति से अटलजी के राजनैतिक सफर की शुरुआत हो गई थी, कम उम्र में उनके छात्र संघ चुनाओं में उच्चपद पर चुना जाना उनके नेतृत्व कार्य गुण का परिचायक था, उस समय यह बातें होती थी कि यह युवक देश की राजनीति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। उस समय देश पराधीनता था, स्वाधीनता आंदोलन जोर पकड़ता जा रहा था, राष्ट्रीय आंदोलन में पहले से स्थापित राष्ट्रीय नेता पुरजोर तरीके से शिरकत कर रहे थे। उस दौरान 1942 में जब अटल जी की उम्र 18 वर्ष से भी कम थी और वह इंटर के छात्र थे तब महात्मा गांधी के भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने भाग लिया था और 23 दिन की जेल यात्रा भी करी थी।
अपनी पढ़ाई के दौरान एम.ए. की उपाधि प्रथम श्रेणी में प्राप्त करने के बाद अटल जी और उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी ने एक साथ एलएलबी की डिग्री प्राप्त की। उनका मन आगे पीएचडी करने का था लेकिन संघ के कार्यों से जुड़े होने के कारण उनकी जिम्मेदारियां बढ़ती जा रही थी और अटलजी को पत्रकारिता का जबरदस्त शौक था, पत्रकारिता के शौक को देखते हुए संघ के मासिक पत्र राष्ट्रधर्म मैं उनको सह संपादक पद की जवाबदारी सौंपी गई क्योंकि लेखन अटल जी को प्रिय था इसलिए अटल जी ने सहर्ष रूप से यह जिम्मेदारी स्वीकार की और राष्ट्र धर्म का कार्य संभाला। पंडित दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रधर्म का संपादकीय लिखते थे, अन्य महत्वपूर्ण कार्यों को देखने का काम अटल जी के सुपुर्द थे। राष्ट्रधर्म का कार्य इतनी कुशलता से अटल जी ने संभाला कि उसकी प्रसार संख्या बढ़ती ही गई, अटल जी के बढ़िया लेखों ने राष्ट्र धर्म का प्रसार बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया फिर वह संपादकीय भी लिखने लगे और इस बात की आवश्यकता महसूस की गई कि अब राष्ट्रधर्म का स्वयं का प्रिंटिंग प्रेस हो।राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने प्रेस का प्रबंध किया और इसका नाम भारत प्रेस रखा गया कुछ समय बाद भारत प्रेस से मुद्रित होने वाला दूसरा समाचार पत्र पाञ्चजन्य भी प्रकाशित होने लगा इस समाचार पत्र का संपादन कार्य पूर्णता अटल जी के हाथों में आ गया और यहीं से सक्रिय पत्रकारिता के रूप में अटलजी सामने आए पाञ्चजन्य के संपादन का कार्य पूरी कुशलता के साथ अटलजी कर रहे थे कुछ ही समय बीता था कि 15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हो गया अटल जी ने भी देश की आजादी के लिए जेल यात्राएं की थी इस समय जब देश पूरा आजादी का हर्ष मना रहा था तब उनकी प्रसन्नता की भी कोई सीमा नहीं थी।
अब अटल जी की लेखनी की धार और अधिक पानी हो गई थी कुछ महीनों में ही वह निर्भीकता के साथ संपादन का दायित्व निभाए रहे थे इसी दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या हो गई और नाथूराम गोडसे का संबंध राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से होना पाया गया इसलिए तात्कालिक सरकार ने संघ की भारत प्रेस को बंद करवा दिया। उस समय तक अटलजी पूरी तरह से पत्रकारिता में रच-बस गए थे । पत्रकारिता को अपना व्यावसायिक जीवन बना लिया था अतः उन्होंने इलाहाबाद जाकर क्राइसिस टाइम्स नामक अंग्रेजी अखबार के लिए अपनी सेवाएं देना आरंभ की कुछ समय बाद वाराणसी के चेतना साप्ताहिक का कार्यभार भी अटल जी ने संभाला ।
1950 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रतिबंध हटने के बाद लखनऊ से प्रकाशित होने वाले दैनिक स्वदेश का पुनः प्रकाशन आरंभ हुआ, अटल जी ने लखनऊ आकर उसके संपादन का भार संभाला लेकिन आर्थिक परेशानियों के चलते दैनिक स्वदेश कुछ समय बाद बंद हो गया । जिसका अंतिम संपादकीय आत्मविदा अटल जी ने लिखा, यह संपादकीय बहुत चर्चित हुआ था। दैनिक स्वदेश से अवकाश ग्रहण कर अटल जी ने दिल्ली की राह ली और वहां से निकलने वाले वीर अर्जुन में अपनी सेवाएं दी, वीर अर्जुन का प्रकाशन दैनिक भी था और साप्ताहिक भी उन दिनों का वीर अर्जुन हिंदी समाचार पत्रों में अग्रणीय स्थान रखता था, वीर अर्जुन का संपादन करते हुए उन्होंने काफी प्रतिष्ठा और सम्मान हासिल किया, वीर अर्जुन का संपादन अटल जी के पत्रकार जगत का अंतिम कार्य था, वह कवि और पत्रकार के रूप में काफी प्रख्यात हो चुके थे।
अटलजी संघ से जुड़े हुए थे और इसी दौरान संघ के राजनीतिक दल जनसंघ का उदय हुआ। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के निजी सचिव के रूप में कार्य देखने लगे। 1952 में दीपक चुनाव चिन्ह के साथ जनसंघ चुनाव के मैदान में उतरी लेकिन सफलता नहीं मिली । 1953 मे डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन हो गया ।अटलजी दिल्ली में जनसंघ कार्यालय में अपनी सक्रियता के चलते खुद को स्थापित कर चुके थे । 1957 के दूसरे लोकसभा चुनाव में अटलजी ने तीन जगह से चुनाव लड़ा और बलरामपुर सीट से विजय होकर पहली बार लोक सभा पहुचे । और यहीं से राष्ट्रीय राजनीति का अभिन्न अंग बन गये ।
ऐसा कहा जाता है कि अटल जी की भाषण शैली से पंडित नेहरू इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने कहा था कि ये नवयुवक कभी ना कभी देश का प्रधानमंत्री ज़रूर बनेगा। बाद में नेहरू की ये भविष्यवाणी सही साबित हुई। साल 1977 में  केंद्र में जनता दल की सरकार बनी तो अटल बिहारी वाजपेयी को विदेश मंत्री बनाया गया। तब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए हिंदी में भाषण दिया था। ये पहला मौका था जब संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी नेता ने हिंदी में भाषण दिया था। पहली बार इतने बड़े मंच से विश्व का हिंदी से परिचय हुआ था। 1996 में जब उनकी सरकार सिर्फ एक मत से गिर गई तो वाजपेयी ने संसद में एक जोरदार भाषण दिया था। वक्त प्रधानमंत्री के तौर पर यह वाजेपयी का अंतिम भाषण था। इस भाषण के बाद वह राष्ट्रपति को अपने इस्तीफा सौंपने चले गए थे। इस भाषण की आज भी मिसाल दी जाती है।
अपनी लेखनी के प्रति अटलजी सदैव गंभीर रहे,उन्होने अपने पत्रकार और कवि को कभी खत्म नहीं होने दिया ।जब तक वे होशोहवास में रहे कविता लिखते रहे । 25 दिसम्बर 1924 को जन्में अटलजी 16 अगस्त 2018 को अपनी देह यात्रा पुरी कर गये लेकिन अपने चाहने वालों और राजनैतिक विरोधियों के दिलों में सदा बने रहेंगे । उन्हीं की कविता की पंक्तियों के साथ सादर नमन...
क्या खोया
क्या पाया जग में
मिलते और बिछुड़ते मग में
मुझे किसी से नहीं शिकायत
यद्यपि छला 
गया पग-पग में
एक दृष्टि बीती पर डालें
यादों की पोटली टटोलें!
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी
जीवन एक अनन्त कहानी
पर तन की अपनी सीमाएँ
यद्यपि सौ 
शरदों की वाणी
इतना काफ़ी है अंतिम 
दस्तक पर, खुद दरवाज़ा खोलें!
जन्म-मरण अविरत फेरा
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहाँ, कल कहाँ कूच है
कौन जानता 
किधर सवेरा

अंधियारा आकाश असीमित,
प्राणों के पंखों को तौलें!
अपने ही मन से कुछ बोलें!
-संदीप सृजन
संपादक-शाश्वत सृजन मासिक
ए-99 वी.डी. मार्केट.उज्जैन 456006
मो.09406649733


 वर्षा पर कुछ दोहे: -

बिन घूंघरु के बूंद ने, छेड़ा रस श्रंगार 


नखरे इस बरसात के ,क्या बतलाए मित्र ।
डरकर स्वागत में धरा, बन जाती है इत्र ।।

कुछ बूंदे आसाड़ की, जगा गई है प्यार ।
आस लगाए सावनी, करे धरा श्रंगार ।।

जाते जाते आम ने,की जामुन से बात।
मित्र मुबारक आपको, सावन की बरसात।।

नर्तन बूंदों कर रही ,बादल देते थाप ।
अवनी का आंगन भरा, सुख के होते जाप।।

आँगन आँगन है खुशी, मिटे सभी संताप।
बरखा बूंदों ने हरे, तन मन के आताप ।।

यौवन नदियों पर चढ़ा, बदली सबकी चाल।
करने को अठखेलिया,नाले भरे उछाल ।।

शहनाई के सुर सभी,मान गये है हार ।
बिन घूंघरु के बूंद ने, छेड़ा रस श्रंगार ।।

तबला भूला थाप को,विस्मित हुई सितार। 
बूंदों के आलाप पर, गूंजा जब मल्हार ।।

धरा, अधर मुस्कान से, हो गई पुरी ग्रीन ।
हर कोई हर्षित लगा, देख रेन का सीन ।।

हर पुलिया को लांघ कर,तटबंधों को तोड़ ।
सागर से मिलने नदी, लगा रही है दौड़ ।।

-संदीप सृजन
ए-99 वी.डी. मार्केट, उज्जैन
मो. 9926061800
आत्म शांति दायक धार्मिक पर्यटन स्‍थ्‍ालः कैवल्य धाम

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कैवल्‍य धाम मंदिर जैन समाज के तीर्थ स्‍थलों में दर्शनीय स्थल है । कैवल्‍य धाम नेशनल हाइवे क्रमांक 6पर रायपुर - भिलाई रोड स्थित कुम्‍हारी नगर जिला दुर्ग में आता है । यह स्थान खारुन नदी के पास  है जो शिवनाथ नदी की सहायक है और  महानदी नदी में जा कर मिलती है ।

जैन तीर्थ स्‍थलों  की सादगी और सुन्‍दरता हर किसी का  मन मोह लेती है । कैवल्य धाम भी एक ऐसा ही आत्म शांति दायक धार्मिक पर्यटन स्‍थ्‍ाल है जो रेलवे ट्रेक के दायी ओर लगभग 40-50 एकड़ श्रेत्र में बना है । यहॉ भव्य परिसर में मुख्य मंदिर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का है जो की जमीन से 101 फिट की ऊँचाई पर बना है आदिनाथ भगवान की करीब 1 मीटर ऊँची पद्मासन मुद्रा प्रतिमा भव्य सिंहासन पर यहाँ विराजित हैजो मंदिर में प्रवेश करते ही हर किसी को सम्मोहित करती हैऔर इस मंदिर के दोनों तरफ 26 देहरियाँ (छोटे मंदिर) बनी हैजिनमें 24 तीर्थंकरों की प्रतिमा उनके जन्म,कुल,दीक्षानिर्वाण की विस्तृत जानकारी के साथ विराजमान है। बांयी तरफ की पहली देहरी में देवी पद्मावती,अंबिका और चक्रेश्वरी की प्रतिमा स्थापित एवं दायी ओर की आख़री देहरी में भोमियाजीनाकोड़ा भैरव एवं घंटाकर्ण महावीर की चित्ताकर्षक प्रतिमा विराजमान है ।
मूल मंदिर के सामने भव्य बगीचा और दोनों तरफ अंग्रेजी के वी आकार में बनी देहरियाँ हर किसी को आकर्षित करती है । यहां मंदिर के भीतर की भव्‍यता और नक्‍काशी देखने लायक है । पहला मंदिर देवी व आखिरी मंदिर देवता है का है उपर की ओर चढते क्रम में व नीचे उतरते क्रम में सभी तीर्थंकरों की मूर्तियां अद्भूत है जिनमें आप एक तिनके समान भी अंतर नहीं कर सकते है । ऊपर आदिनाथ मंदिर पर पहुँच कर यहाँ की भव्‍यता व आसपास के मनोरम दृश्‍य देखकर मन आनंदित हो जाता है । पीछे की ओर जिन कुशलसूरि दादावाडी स्थित है और पास में ही भोजनशाला व धर्मशाला भी बनी है जहाँ पर सात्विक भोजन व सुंदर आवास की व्यवस्था अत्यंत ही कम खर्च पर मिल जाती है ।


इस परिसर से सटा हुआ विचक्षण विद्या पीठ है जहाँ आवासीय विद्यालय मे  करीब 350 बच्चें आधुनिक शिक्षा के साथ नैतिक और धार्मिक शिक्षा प्राप्त कर रहे है ।
रायपुर के आसपास दर्शनीय स्‍थल में यह मंदिर बहुत ही खूबसूरत व आध्‍यात्मिक शांति प्रदान करता है। नयी जगह घूमने के शौकीनों व शहर के बाहर शांति खोजने वाले कैवल्‍य धाम का दर्शन कर आनंदित हो सकते है ।
कुम्हारी शहर में सुंदर महामाया देवी मंदिर एक और लोकप्रिय धार्मिक आकर्षण है। निकट और दूर के स्थानों से पर्यटक और भक्त इस मंदिर में प्रार्थना करते हैं और देवी महामाया के आशीर्वाद मांगते हैं। 
यहॉ पहुँचने के लिए रेल से रायपुरदूर्ग या भिलाई उतर कर टेक्सी या बस से पहूँच सकते है । हवाई मार्ग से जाने वाले रायपुर से जा सकते है ।

संदीप सृजन
संपादक- शाश्वत सृजन
ए- 99 वी.डी. मार्केट, उज्जैन 456006

कुछ सपनोंं के मर जाने से, जीवन नहीं मरा करता है

श्रद्धांजलिः गोपालदास 'नीरज'
कुछ सपनों के मर जाने से,जीवन नहीं मरा करता है 
नीरज हिंदी गीतों का वो राजकुमार जिसे सदियों तक भुलाया नहीं जा सकेगा 19 जुलाई 2018 को इस दुनिया को अलविदा कह गया । नीरज हिंदी कविता का वह महान कलमकार जो अपने रोम-रोम में कविता लेकर जीया, नीरज जिसके गीत केवल गीत नहीं है जीवन का दर्शन बनकर जनमानस में एक नई चेतना जागृत करते है । ऐसे अनेक चित्र नीरज का नाम मस्तिष्क में आते ही बनने शुरु हो जाते है । नीरज जैसे साधक सदियों में होते है जिन्हें गीत, लय,भाव और शब्द स्वयं चुनते है तभी नीरज लिखते है 'मानव होना भाग्य हैकवि होना सौभाग्य'  किंतु ऐसा सौभाग्य किसी-किसी को ही हासिल होता है।

गीत और कविता से प्यार करने वाले हर शख्स के दिलो-दिमाग में गोपाल दास नीरज की एक ऐसी अनूठी छवि बनी है जिसे भविष्य की कोई भी मिटा नहीं सकता। नीरज का जन्म जनवरी 1925 को यूपी के इटावा जिले के ग्राम पुरावली में हुआ था।जीवन का प्रारंभ ही संघर्ष से हुआ, अलीगढ़ को अपनी कर्मस्थली बनाया,बहुत मामूली-सी नौकरियों से लेकर फ़िल्मी ग्लैमर तकमंच पर काव्यपाठ के शिखरों तकगौरवपूर्ण साहित्यिक प्रतिष्ठा तकभाषा-संस्थान के राज्यमंत्री दर्जे तक उनकी उपलब्धियाँ उन्हें अपने संघर्ष-पथ पर पढ़े मानवीयता और प्रेम के पाठ से डिगा न सकीं । बहुत ही कम लोगों को यह मालूम है कि 60 और 70 दशक में अपने बॉलीवुड गीतों के जरिये लोगों के दिलों में जगह बना चुके गोपाल दास नीरज’ ने चुनाव भी लड़ा था। साल 1967 के आम चुनाव में नीरज’ कानपुर लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे थे। नीरज का दृष्टिकोण स्वहित से ज्यादा जनहित रहा तभी वे एक दोहे में कहते थे-
हम तो बस एक पेड़ हैंखड़े प्रेम के गाँव।
खुद तो जलते धूप मेंऔरों को दें छाँव।।
नीरज ने कविता के वस्तु-रूप को कभी नियंत्रित नहीं किया। मंच की कविताएँ हों या फ़िल्मी गीतनीरज का कवि कहीं भी समझौता नहीं करता था । फिल्मों के लिए लिखे गए उनके गीत अपनी अलग पहचान रखते हैं। फ़िल्म-संगीत का कोई भी शौकीन गीत की लय और शब्द-चयन के आधार पर उनके गीतों को फ़ौरन पहचान सकता है। वस्तु के अनुरूप लय के लिए शब्द-संगति जैसे उनको सिद्ध थी। फिल्मी गीतों को भी वे उसी लय में मंचों से गाया करते थे-
स्वप्न झरे फूल सेमीत चुभे शूल से,लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे।कारवाँ गुज़र गया गुबार देखते रहे।
ये वो गीत जो जीवन का सार बताता है, जीवन की गहराई से रुबरु करवाता है नीरज ही कह सकते है उन्होने जीवन को सिर्फ जीया नहीं लिखा भी है अपनी रचनाओं में इसीलिए वे लिख गये-
छिप छिप अश्रु बहाने वालों,मोती व्यर्थ बहाने वालों, कुछ सपनों के मर जाने से,जीवन नहीं मरा करता है ।
सामान्य जन के लिए उनके मन में दर्द थाइसी दर्द को वे 'प्रेमकहते थे. प्रेम ही उनकी कविता का मूल भाव भी हैऔर लक्ष्य भी था। उनके कविता-संग्रह 'नीरज : कारवाँ गीतों काकी भूमिका से उन्हीं के शब्दों में- "मेरी मान्यता है कि साहित्य के लिए मनुष्य से बड़ा और कोई दूसरा सत्य संसार में नहीं है और उसे पा लेने में ही उसकी सार्थकता है... अपनी कविता द्वारा मनुष्य बनकर मनुष्य तक पहुँचना चाहता हूँ... रास्ते पर कहीं मेरी कविता भटक न जाएइसलिए उसके हाथ में मैंने प्रेम का दीपक दे दिया है... वह (प्रेम) एक ऐसी हृदय-साधना है जो निरंतर हमारी विकृतियों का शमन करती हुई हमें मनुष्यता के निकट ले जाती है. जीवन की मूल विकृति मैं अहं को मानता हूँ... मेरी परिभाषा में इसी अहं के समर्पण का नाम प्रेम है और इसी अहं के विसर्जन का नाम साहित्य है."
हम तो मस्त फकीरहमारा कोई नहीं ठिकाना रे। जैसा अपना आना प्यारेवैसा अपना जाना रे।
दार्शनिक चिंतन और आध्यात्मिक रुचि के नीरज का मन मानव-दर्दों को अनेकविध रूप में महसूस करता था और उनके मनन का यही विषय था. 'सत्यकिसी एक के पास नहीं हैवह मानव-जाति की थाती है और मनुष्य-मनुष्य के हृदय में बिखरा हुआ है। शायद इसीलिए नीरज ने अपनी गजल के मतले में कहा-
अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए। जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए।
दर्शन तो उनकी लेखनी का अहम हिस्सा रहा है जब वे लिखते है-
कहता है जोकर सारा ज़माना,आधी हक़ीकत आधा फ़साना,चश्मा उठाओफिर देखो यारो, दुनिया नयी हैचेहरा पुराना

नीरज को यूं तो शब्दों में बांध पाना मुश्किल है ,और जो नीरज ने कहा है ,नीरज ने लिखा है और नीरज ने गाया है उस पर कुछ लिखना मेरे जैसे व्यक्ति के लिए असंभव है । नीरज जब महाप्रयाण कर गये तब मैं अपने शब्दों में विनम्र श्रद्धाजलि अर्पित करते हुए यही कहूँगा-
कालखंड का युग पुरुष, गया काल को जीत।
छोड़ गया भू लोक पर, दोहें, गजलें, गीत।।

-संदीप सृजन

संपादक-शाश्वत सृजन

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