पुस्तक मेले की भीड़ में अपनी पहली
किताब का विमोचन हो यह इच्छा पहले ही नहीं थी । डर लग रहा था बड़े पुस्तक मेले और बड़े
लेखकों के बीच कैसे माहौल मिलेगा। लेकिन प्रकाशक की इच्छा थी की कुछ “बड़े हाथों” से गॉव के नये छोरे की पहली किताब का
विमोचन करवाए। ताकि हाथों-हाथ कुछ किताबें बिक जाए। कुछ किताबें खरीद कर नया लेखक
बड़े लेखकों को भेट कर दे, ताकि प्रकाशन का मुनाफा उसकी जेब में आ जाए। क्योंकि
मूल रकम तो वो नये नवेले लेखक से पहले ही ले चूका था।
आखिर प्रकाशक ने पुस्तक मेले का एक
दिन नये लेखक के नाम किया और नामचिन लेखकों के एक दल को विमोचन के लिए राजी कर
लिया बदले में कुछ किताबें मुफ्त उस दल के लोगों को देना तय हुआ । ठीक समय से दो
घंटे देरी से हंसी-ठिठोली करता नामचिन लेखकों का दल प्रकाशक के स्टॉल पर पहुंचा,
जहॉ बेचारा नया लेखक सहमा-सहमा नाश्ता और मिठाई लिए उनका इंतजार कर रहा था ।
प्रकाशक के साथ लेखक ने दल का स्वागत किया और बिना किसी औपचारिकता के सीधे-सीधे
उनके हाथों में एक-एक किताब पकड़ा दी। अलग-अलग एंगल से फोटो लिए गये। प्रकाशक खुश
हो गया फोटो सोशल मिडिया पर तत्काल डाल दिए । सबने जम कर नाश्ता किया, मिठाई खाई
लेकिन न किसी ने उस नये लेखक की किताब को अलटा-पलटा और न ही कोई टिप्पणी की और तो
और बधाई तक भी नही दी। बेचारा नया लेखक अपना सा मुंह बनाए सोच रहा था क्या बड़े
लेखक और बड़े मेले ऐसे होते है ?
-संदीप सृजन
संपादक- शाश्वत सृजन
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