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व्यंग्यकार - डॉ महेन्द्र अग्रवाल |
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व्यंग्यकार - डॉ महेन्द्र अग्रवाल |
व्यंग्य लिखा नहीं जाता पैदा हो जाता है। मेरा ऐसा मानना है। क्योंकि संसार में हर पल कुछ न कुछ घटता है। उस घटे हुए में से एक टीस जो निकलती है। वह व्यंग्य है। जो हुआ उसमें ये नहीं होना था। तब व्यंग्य पैदा होता है। "सजग का माइक्रोस्कोप" के नाम से संजय जोशी 'सजग' का पहला व्यंग्य संग्रह आया है। संजय जोशी के नाम के साथ सजग उपनाम उनकी जागृत चेतना का पर्याय है। वे समाज, राजनीति,साहित्य,संस्कृति,धर्म,मिडिया,शिक्षा में जो विसंगतियाँ है,जो विडम्बना है उनको अपने दिमाग के माइक्रोस्कोप से बड़े ध्यान से देखते है और अपनी रिपोर्ट इस संग्रह के रूप में समाज को देते है। उनकी रिपोर्ट आम आदमी को समझ आए और गुदगुदी दे जाए ये उनका प्रयास है।
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संजय जोशी सजग और संदीप सृजन |
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"अच्छा कवि बहुत ज़िद्दी होता है और कविता लिखते समय अपने विवेक और शक्ति के अलावा किसी और की नहीं मानता है।" साहित्यकार विष्णु खरे की यह बात उज्जैन के गौरव गीतकार हेमंत श्रीमाल जी पर सटीक बैठती है।श्रीमाल जी जब गीत बुनते है तो कागज़ और क़लम का उपयोग नहीं करते बल्कि उस गीत को अपने मस्तिष्क में पूरा तैयार करते है और पूरा होने के बाद कागज़ पर आकार देते है। याने सिर्फ अपने विवेक याने बुद्धि और शक्ति याने स्मरण शक्ति का ही उपयोग कर रचनाकर्म करते है। यही वजह है कि हेमंत जी के गीतों में एक अलग चिंतन है जो समाज को नये विचार दे कर सोचने को मजबूर करता है। उनने हमेशा क्वालिटी पर ध्यान दिया है। उनका स्वर भी सधा हुआ है। जिनने उनको प्रत्यक्ष सुना है। वे जानते है कि कवि सम्मेलनों में उनके गीतों पर जनता ने अक्सर खड़े होकर तालियाँ बजायी है।
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गीतकार श्री हेमन्त श्रीमाल |
"आईने में तैरती सच्चाइयाँ" शीर्षक से हाल ही में हेमंत श्रीमाल जी का पहला गीत संग्रह म.प्र. साहित्य अकादमी के सहयोग से प्रकाशित हुआ है। जिसमें उनके राष्ट्रीय और सामाजिक चेतना के गीतों का संकलित है। 60 गीतों के इस संकलन में जो गीत है उनमें से अधिकांश गीत वे मंचों पर सुनाते रहते है। और श्रोताओं का जो प्रतिसाद मिलता है वो देखने लायक होता है। श्रीमाल जी के गीतों पर लिखना सूरज को दीया दिखाने जैसा है। फिर भी एक कोशिश उनके इस संग्रह से पाठकों परिचित करवाने के लिए कर रहा हूँ।
हेमंतजी एक मे गीत में कहते है कि-
शहीदों की शपथ तुझको कलम लिख धार की बातें।
लहू को गर्म रखने हित तनिक तलवार की बातें।
तब वे कलमकारों से आव्हान करते नजर आते है। और कलमकार को अपने नैतिक दायित्व से परिचित करवाते है।
मजदूर की पीड़ा को स्वर देते हुए वे कहते है कि-
सांसे गिरवी रखकर भी हम आस नहीं कर पाते है।
सपनों की क्या बात करें जब पेट नहीं भर पाते है।
श्रीमाल जी की मंचों की बहुत प्रसिद्ध रचना चंबल की बेटी का बयान मानवता को झकझोर देने वाली रचना है। पढ़ते हुए रोंगटे खड़े करने वाली है। सदी के नाम रचना में जो बदलाव सभ्यता में आए है उनको बहुत दमदारी के साथ वे कहते है-
दादागिरी का राज है गुण्डों का जोर है
पग-पग पे लूट और लुटेरों का शोर है
कैसा ये लोकतन्त्र है कैसा ये दौर है
इक दूसरे के वास्ते हर दिल में चोर है।
राजनीति और समाजिक विषमता पर उनकी रचना *जलता हुआ सवाल* मंचों की अजेय रचना है। वे लिखते है-
सत्ता में पैठ होते ही मलखान हो गये
पहले ही क्या कमी थी जो बेइमान हो गये
रिश्वत की चलती-फिरती इक दूकान हो गये
कल के भिखारी आज के धनवान हो गये
देश के हालात और तात्कालीन स्थिती पर लिखे गीत में हेमंत जी के ये शब्द कालजयी है-
जब तक कुर्सी ही सब कुछ है, और कुछ भी ईमान नहीं
तब तक मेरे देश तुम्हारा होना है कल्याण नहीं
सरकारी घोटालों पर केन्द्रीत रचना देखो नाटक नंगों का, भोपाल गैस कांड पर लिखी गूंगे का बयान, पंजाब मे हुए दंगों पर धधकते हुए पंजाब के नाम, देश को जब सोना विदेशों में गिरवी रखना पड़ा तब तुच्छ भिखारी बना दिया, दक्षिण भारत में आए तूफान के बाद की लच्चर सरकारी व्यवस्था पर उत्तर दो, था ध्यान कहॉ?, अबला पर हुए अत्याचार पर लिखी फिर एक मंदिर तोड़ दिया, बहु को जिंदा जलाए जाने वाले हादसों पर तेल झमाझम झार दिया, पुतलीबाई के चम्पा से नगरवधु बनने तक की कहानी कहती रचना चम्पा घर से भाग गई, कोरोना महामारी के के दौरान हुए लॉक डाउन की स्थिती पर लिखी रचना लॉक डाउन अप्रैल 2020- पैकेज और प्यार विशेष रचनाओं की श्रेणी में आती है।
सामाजिकता व दार्शनिकता वाली रचनाओं में गौ हत्या स्वीकार नहीं, कांच का मकान आदमी, हर मुफलिस धनवान हुआ, मौत का अहसास के अलावा भी सारी रचना श्रेष्ठतम है। श्रीमाल जी की ग़ज़लें भी चिंतन से भरपूर है।
पुस्तक आईने में तैरती सच्चाइयाँ बार बार पढ़ी जाने वाली कृति है। कोई भी गीत खुल जाए पूरा पढ़े बगैर मन नहीं मानता । यह कृति काफी देर से उन्होनें समाज के बीच रखी है ।आवरण से अंत तक पुस्तक सुंदर है। इस कृति के लिए श्रद्देय हेमंत श्रीमाल जी को बधाई। और आने वाली कृतियों के लिए शुभकामनाएँ...।
पुस्तक - आईने में तैरती सच्चाइयाँ
गीतकार - हेमन्त श्रीमाल
प्रकाशक- ऋषिमुनि प्रकाशन उज्जैन
पृष्ठ- 104 (सजिल्द)
मूल्य- 450
चर्चाकार- संदीप सृजन, उज्जैन
sandipsrijan999@gmail.com
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*संकलन* महात्मा गांधीः विचार और नवाचार *संपादक* प्रो. शैलेन्द्रकुमार शर्मा *प्रकाशक* विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन |
भारत
के स्वतंत्रता आंदोलन में मोहनदास करमचंद गांधी का प्रवेश एक चमत्कारिक व्यक्तित्व
का प्रवेश था। मोहनदास गांधी जो बैरिस्टर से महात्मा तक की उपाधियों से अलंकृत हुए
और स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रपिता के रूप में स्वीकार किए गये उनका जीवन दर्शन और
आचरण किसी भी महामानव से कम नहीं है। साहित्य और समाज में जितना चिंतन- मनन तुलसीदासजी के साहित्य पर हुआ उतना
किसी पर नहीं हुआ। गांधी जी पर भी तुलसीदासजी का गहन प्रभाव रहा। यही वजह रही की
वे सदैव राम राज के पक्षधर रहे। पिछले सौ सालों में जितना साहित्य गांधी जी को
लेकर लिखा गया, उनके आदर्श जीवन पर जितनी व्याख्याएँ की गई ।
उतना लेखन शायद ही किसी महापुरुष पर हुआ होगा।
भारत
सहित सारे विश्व में गांधीजी के 150 वें जन्म वर्ष
में वर्ष पर्यंत कई आयोजन हुए, और कई प्रकाशन समाज में आए।
उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा भी इस अवसर को यादगार बनाने की पहल की गई
और हिंदी के आचार्य प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा के संपादन में एक महत्वपूर्ण कृति 'महात्मा गांधीः विचार और नवाचार' का प्रकाशन किया गया। इस कृति में 21 चिंतकों ने
महात्मा गांधी के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अपनी लेखनी चलाई और गांधी जी के जीवन
को सरल शब्दों में समाज के सामने रखने का उपक्रम किया है। जो कि सराहनीय है।
गांधी
जी अपने समय के तमाम महापुरुषों में बिरले थे क्योंकि उन्होंने सत्य और नैतिक जीवन
को सिर्फ जीया ही नहीं लिखने का साहस भी किया। अपने आदर्शो को तो समाज के सामने रखा
पर अपने जीवन की बुराइयों को छुपाने की कोशिश भी नहीं की। यह उनकी सत्यनिष्ठा को
दर्शाता है।
गांधी
जी को वैष्णव संस्कार अपनी माँ से जनम घुट्टी के साथ मिले थे। और वे ही उनके आदर्श
रहे इस बात पर प्रकाश डालते हुए विक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बालकृष्ण शर्मा ने लिखते है
कि गांधी जी के जीवन में नरसी मेहता के भजन वैष्णव जन तो तेने कहिये का बहुत
प्रभाव रहा। और इसी भजन की सरल शब्दों
में उन्होंने व्याख्या की है। इस भजन को ही गांधीजी ने अपने जीवन में अंगीकार
किया। इस भजन में उल्लेखित गुण परोपकार, निंदा न करना,
छल कपट रहित जीवन, इंद्रियों पर नियंत्रण,
सम दृष्टि रहना, पर स्त्री को माता मानना,
असत्य नहीं बोलना, चोरी न करना को जीवन पर्यंत
अपनाया और इन्हीं के द्वारा भारत में राम राज की स्थापना की संकल्पना की। ये गुण
ही मोहनदास गांधी को महात्मा गांधी बनाते है।
गांधीजी
आधुनिक भारत के अकेले नेता थे जो किसी एक वर्ग एक विषय एक लक्ष्य को लेकर नहीं चले, जन-जन के नेता थे, करोड़ों लोगों के ह्रदय पर राज करते थे, इस बात के
साथ हरियाणा साहित्य अकादमी की पूर्व निदेशक डॉ मुक्ता ने गांधीजी के मुख्य
सरकारों पर केंद्रित लेख में लिखा है कि गांधीजी साम्राज्यवाद, जातिय सांप्रदायिक समस्या, भाषा नीति और सामाजिक
सुधार पर अपने व्यक्तिगत और राष्ट्रीय सरोकार जो की गांधी को महान विभूति बनाते
है।
गांधीजी
का प्रभाव देश के हर वर्ग पर रहा है, हरेक जाति हरेक समाज के लोग उनसे प्रभावित रहे हैं , तो साहित्य जगत उनसे कैसे अछूता रह सकता था। इसी बात पर संकलन के संपादक
और विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक डॉ शैलेन्द्रकुमार शर्मा ने प्रकाश डाला
है। गांधीजी के विभिन्न पहलुओं पर तात्कालिक लेखकों ने अपनी भाषा,
अपनी बोली में गांधीजी के जीवनकाल में ही महान रुप में स्वीकार कर
लिया था, जिनमें देश के नामचीन लेखक और कवि मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी बालकृष्ण नवीन ,सियारामशरण गुप्त,
प्रेमचंद ,निराला, सुभद्रा
कुमारी चौहान, दिनकर आदि कोई भी गांधीजी के विचारों से अछूते नहीं रहे हैं। इस
विस्तृत लेख में गांधीजी के जीवन और उनकी कार्यशैली तथा जन आस्था को काफी अच्छे
ढंग से समझाया गया है जो कि इस कृति का एक महत्वपूर्ण आलेख है।
अन्य
आलेखों में डॉ राकेश पांडेय का “प्रवासी साहित्य,
समाज और गांधी”, डॉ मंजु तिवारी का का “लोकगीतों का अकेला लोकोत्तर नायक गांधी”, डॉ पूरन
सहगल का “अनंत लोक के महानायक गांधी”, डॉ
सत्यकेतु सांकृत का “महात्मा गांधी और छात्र राजनीति”,
डॉ जगदीशचन्द्र शर्मा का “महात्मा गांधी का
भाषा चिंतन”, डॉ प्रतिष्ठा शर्मा का “महात्मा
गांधी का हिंदी भाषायी प्रेम” इस संकलन के महत्वपूर्ण आलेख
है। जो गांधीजी के बारे में नयी पीढ़ी को काफी कुछ समझा सकते है। अन्य लेख और तीन
कविताएँ गांधीजी के प्रति आस्था और सम्मान प्रदर्शीत करते हुए कुछ तथ्यात्मक
जानकारी देते है और उपयोगी है।
2 अक्टूबर 2020
को गांधी जन्म को 151 साल पूरे हो रहे है। ऐसे
महत्वपूर्ण समय पर गांधी दर्शन से पुन: समाज को रूबरू करवाती यह कृति भी
महत्वपूर्ण है। बढ़िया आर्टपेपर पर रंगीन चित्रावली के साथ इस संकलन को विक्रम
विश्व विद्यालय ने प्रकाशित करवाया है। अंत में गांधी जी के 150 वें जन्म वर्ष पर विश्व विद्यालय के विभिन्न आयोजनों की सचित्र रपट भी दी
गई है। यह संकलन भविष्य में बहुउपयोगी होगा ऐसा विश्वास है ।
चर्चाकार-संदीप सृजन
संपादक- शाश्वत सृजन
ए-99 वी.डी. मार्केट,
उज्जैन 456006
मो. 09406649733
ईमेल- sandipsrijan.ujjain@gmail.com
*कृति- नदिया का संगीत
*लेखक- टीकम चन्दर ढोडरिया
*प्रकाशक- बोधि प्रकाशन, जयपुर
*पृष्ठ- 80
*मूल्य-100/-
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*कृति- सपनों के सच होने तक
*लेखक- राजकुमार जैन ‘राजन’
*प्रकाशक- अयन प्रकाशन, दिल्ली
*मूल्य-260/-
*समीक्षक-संदीप सृजन
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*कृति- डेमोक्रेसी स्वाहा
*लेखक- सौरभ जैन
*प्रकाशक- भावना प्रकाशन, दिल्ली
*पृष्ठ-128
*मूल्य-195/-
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*कृति- जीना इसी का नाम है
*लेखक- राजकुमार जैन राजन
*प्रकाशक- अयन प्रकाशन दिल्ली
*पृष्ठ-104 (सजील्द)
*मूल्य-200/-
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