अगली पीढ़ी के प्राणों में भी बसानी होगी हिन्दी

 


हिन्दी भाषा भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। यह हम भारतीयों की पहचान है। भारत में अनेक भाषाएं हैं मगर फिर भी हिन्दी का प्रभाव सर्वत्र देखा जा सकता है। विश्वभर में करोड़ों लोग हिन्दी भाषा का प्रयोग करते हैं। हिन्दी भाषा एक ऐसी भाषा है,जिसमें जो हम लिखते हैं,वही हम बोलते हैं उसमें कोई बदलाव नहीं होता है। हिन्दी भाषा की सहयोगी लिपि देवनागरी इसे पूरी तरह वैज्ञानिक आधार प्रदान करती है।

इन सभी कारणों से 14 सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने यह निर्णय लिया कि हिन्दी केन्द्र सरकार की आधिकारिक भाषा होगी और हिन्दी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया और इसी निर्णय के महत्व को प्रतिपादित करने तथा हिन्दी को प्रत्येक क्षेत्र में प्रसारित करने के लिये वर्ष 1953 से पूरे भारत में 14 सितम्बर को प्रतिवर्ष हिन्दी-दिवस के रूप में मनाया जाने लगा ।

हिन्दी को समृद्ध करने में सबसे बड़ा योगदान संस्कृत का है। संस्कृत विश्व की सबसे प्राचीन भाषा मानी गई है और हिन्दी का जन्म संस्कृत की कोख से ही हुआ है। कई संस्कृत शब्दों का प्रयोग हिन्दी में बिना किसी परिवर्तन के किया जाता है,उन शब्दों का उच्चारण और ध्वनि भी संस्कृत के समान ही है। इस कारण हिन्दी को एक विशाल शब्द कोष जन्म के साथ ही संस्कृत से मिला है,जो उसके अस्तित्व को विराट बनाता है ।

हिन्दी यूँ तो हमें परम्परा से मिली भाषा है,इस कारण से इसे पैत्रृक सम्पत्ति ही माना जाना चाहिए । जब हम छोटे बच्चे थे और बोलना सीख रहे थे,उस समय हमारे परिवेश की जो भाषा थी वह उम्र के किसी भी पड़ाव पर जाने के बाद भी सहज और सरल ही लगती है।मगर अब लगता है कि अंग्रेजी का प्रभुत्व हिन्दी पर प्रभाव डाल रहा है। हिन्दी का अस्तित्व तभी रहेगा जब हम उसे दिल में बैठा ही रखेंगे । हमें अगली पीढ़ी तक हिन्दी को प्रभावी स्वरुप में पहुंचाना होगा। याद रहे बोलने वालों कीसमझने वालों की संख्या में जब वृद्धि होती हैतो भाषा का विस्तार होता चला जाता है हिन्दी के साथ यही होना चाहिए। हिन्दी को अब सिर्फ राजभाषा नहीं राष्ट्र भाषा का सम्मान मिलना चाहिए।

संदीप सृजन

ए-99 विक्रमादित्य क्लॉथ मार्केट

उज्जैन 456006 (म,प्र)

मो. 9926061800

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सजग का माइक्रोस्कोप में है समाज की रिपोर्ट

व्यंग्य लिखा नहीं जाता पैदा हो जाता है। मेरा ऐसा मानना है। क्योंकि संसार में हर पल कुछ न कुछ घटता है। उस घटे हुए में से एक टीस जो निकलती है। वह व्यंग्य है। जो हुआ उसमें ये नहीं होना था। तब व्यंग्य पैदा होता है। "सजग का माइक्रोस्कोप" के नाम से संजय जोशी 'सजग' का पहला व्यंग्य संग्रह आया है। संजय जोशी के नाम के साथ सजग उपनाम उनकी जागृत चेतना का पर्याय है। वे समाज, राजनीति,साहित्य,संस्कृति,धर्म,मिडिया,शिक्षा में जो विसंगतियाँ है,जो विडम्बना है उनको अपने दिमाग के माइक्रोस्कोप से बड़े ध्यान से देखते है और अपनी रिपोर्ट इस संग्रह के रूप में समाज को देते है। उनकी रिपोर्ट आम आदमी को समझ आए और गुदगुदी दे जाए ये उनका प्रयास है।

संजय जोशी सजग और संदीप सृजन

"सजग का माइक्रोस्कोप" में संजय जोशी जी के 59 व्यंग्य है। जो उन्होनें कहीं दूर जाकर या विशेष चिंतन करके नहीं लिखे है। उन्होने मनुष्य समाज में रहते हुए जो देखा है। उसी में से कुछ चुभन को व्यंग्य का स्वरूप दिया है। अपने व्यंग्य में वे तमाम तरह की बातों के बीच जो गहरे कटाक्ष करते है वे सटीक ब्रह्म वाक्य  है ,जैसे-
- सेल्फी आधुनिकता की निशानी और नशा हो गया है।
- कर्म प्रधान को चुगली प्रधान ने हर जगह मात दे रखी है।
- इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कितने ज्ञानी है। फर्क इससे पड़ता है कि आपमें मूर्खता का प्रतिशत कितना है।
- राजनीति को भी विज्ञान कहा जाता है, पर विज्ञान की तरह इसमें भी थ्योरी और प्रेक्टिकल का अंतर है।
- नेता नमक की भांति राजनीति को कभी स्वादहीन तो कभी स्वादिष्ट बनाता है।
- जब तनाव की हो बहार, मधुमेह का लो उपहार।
- ट्रायल पर ट्रायल चलते रहेंगे और हम सब कभी कायल तो कभी घायल होते रहेंगे, हमारा देश ट्रायल प्रधान देश है।
- ठग और डाकू में एक ही असमानता है, डाकू हथियार का उपयोग करते है और ठग दिमाग का।
- दिल्ली में राजनीति का एक शोरूम है, शोरूम के संचालक का अपने पर ही विश्वास नहीं है।
- नेट पर हर त्यौहार को इतने धूमधाम से मनाया जाता है कि उसकी ख्याति अन्तर्राष्ट्रीय हो जाती है।
ये सारी चुटकियाँ व्यंग्यों में जान डालती नजर आती है, 59 व्यंग्यों में और भी कई चुटकियाँ पाठकों को पढ़ने को मिलेगी। व्यंग्यों में रोचकता है क्योंकि सजग जी के अधिकांश व्यंग्य कथानक शैली में है, संवाद रूप में है। जो की आम बातचीत जैसे लगते है। और उन्हीं के बीच में चुटकियाँ उन्होंने ली है। व्यंग्य में विषय के दोहराव से विचारों का दोहराव भी देखने को मिला है तो कहीं-कहीं पर सपाट बयानी व्यंग्य को लेख में बदल रही है। पर उबाऊ पन नहीं है, यह सुखद है। सभी व्यंग्य दैनिक समाचार पत्रों में कहीं न कहीं प्रकाशित हो चुके है। पढ़ने योग्य है।
"सजग का माइक्रोस्कोप" का प्रकाशन म.प्र. साहित्य अकादमी के सहयोग से हुआ है। प्रकाशन की क्वालिटी बहुत बढ़िया है, इसके लिए उत्कर्ष प्रकाशन भी बधाई का पात्र है। आगे और भी सजगता से सजग जी का नया व्यंग्य संग्रह समाज को मिले यही शुभकामनाएं।

पुस्तक - सजग का माइक्रोस्कोप (व्यंग्य संग्रह)
लेखक- संजय जोशी 'सजग'
पता - 78, गुलमोहर कॉलोनी, रतलाम
प्रकाशक- उत्कर्ष प्रकाशन, दिल्ली
पृष्ठ - 132
मूल्य- 200

चर्चाकार - संदीप सृजन, उज्जैन
मो. - 9406649733