संदीप सृजन का सृृजन संसार
सारे दिन चलता रहा,बूँदों का व्यापार । सूद धरा को मिल गया, बाकी रहा उधार ।।
उमड़-घुमड़ घन छा रहे, कामुक हुई बयार । बूँदों की रस धार ले, नभ से बरसा प्यार ।। @संदीप सृजन
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