महात्मा
गांधी और लाल बहादुर शास्त्री ऐसे दो महामानव जो भारत के भाग्य विधाता रहे, जिनकी
विचार धारा एक दुसरे की पूरक रही। जो देश के लिए जिए और देश के हित में ही काल के
ग्रास बने । देश और समाज के प्रति दोनों की समर्पण भावना में किंचित मात्र भी
संदेह नहीं किया जा सकता है। ऐसे दोनों महापुरुषों का जन्म दिन एक साथ होना भी
किसी महान संयोग से कम नहीं है।
गांधीजी अहिंसा
के प्रबल समर्थक, शांति के अग्रदूत रहे। तो शास्त्री जी दृढ़ इच्छा शक्ति के व्यक्तित्व
बनकर समाज में उभरे। गांधी जी के जीवन ने न केवल भारतीय समाज को प्रभावित किया वरन
विश्व के तमाम देशों में उनके जीवन को आदर्श जीवन के आधार माना जाता है। तो
शास्त्री जी की नैतिक कार्यशैली और दूरदर्शिता का कोई सानी नहीं है। वर्तमान समय
में बढ़ती भूखमरी, बेरोजगारी, विश्व
हिंसा, वैश्विक आर्थिक मंदी और आपसी वैमनस्यता जैसी समस्याओं
से सारा विश्व आहत है। ऐसे समय में महात्मा गांधी और शास्त्री जी के विचारों की
प्रासंगिकता और अधिक हो जाती है। तथा उनके कार्यों के अनुसरण से विश्व की तमाम
समस्याओं का हल हो सकता है।
गांधी जी
अपने समय के तमाम महापुरुषों में बिरले थे क्योंकि उन्होंने सत्य और नैतिक जीवन को
सिर्फ जीया ही नहीं लिखने का साहस भी किया। अपने आदर्शो को तो समाज के सामने रखा
पर अपने जीवन की बुराइयों को छुपाने की कोशिश भी नहीं की। यह उनकी सत्यनिष्ठा को
दर्शाता है।
गांधी जी
को वैष्णव संस्कार अपनी माँ से जनम घुट्टी के साथ मिले थे। गांधी जी के जीवन में
नरसी मेहता के भजन वैष्णव जन तो तेने कहिये का बहुत प्रभाव रहा। इस भजन को ही
गांधीजी ने अपने जीवन में अंगीकार किया। इस भजन में उल्लेखित गुण परोपकार, निंदा न करना, छल कपट रहित जीवन, इंद्रियों पर नियंत्रण, सम दृष्टि रहना, पर स्त्री को माता मानना, असत्य नहीं बोलना, चोरी न करना को जीवन पर्यंत
अपनाया और इन्हीं के द्वारा भारत में राम राज की स्थापना की संकल्पना की। ये गुण
ही मोहनदास गांधी को महात्मा गांधी बनाते है।
वहीं लाल
बहादुर शास्त्री बचपन से अभावों में पले और बड़े हुए लेकिन अपने मितव्ययी और
आत्मनिर्भर स्वभाव के चलते हर हाल में खुश रहने वाले व्यक्तियों में थे। बड़े होने
के साथ ही लाल बहादुर शास्त्री विदेशी दासता से आजादी के लिए देश के संघर्ष में
अधिक रुचि रखने लगे। वे महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे स्वाधिनता आंदोलन से
प्रभावित थे। लाल बहादुर शास्त्री जब केवल ग्यारह वर्ष के थे तब से ही उन्होंने
राष्ट्रीय स्तर पर कुछ करने का मन बना लिया था।
गांधी जी
ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय लाल बहादुर
शास्त्री केवल सोलह वर्ष के थे। उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान पर अपनी
पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। उनके इस निर्णय ने उनकी मां की उम्मीदें
तोड़ दीं। उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत
कोशिश की लेकिन वे इसमें असफल रहे। लाल बहादुर ने अपना मन बना लिया था। उनके सभी
करीबी लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं
बदलेंगें क्योंकि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से चट्टान की तरह
दृढ़ हैं।
गांधीजी
आधुनिक भारत के अकेले नेता थे जो किसी एक वर्ग एक विषय एक लक्ष्य को लेकर नहीं चले, जन-जन के नेता थे,
करोड़ों लोगों के ह्रदय पर राज करते थे, गांधीजी
साम्राज्यवाद, जातिय सांप्रदायिक समस्या, भाषा नीति और सामाजिक सुधार पर अपने व्यक्तिगत और राष्ट्रीय सरोकार जो की
गांधी को महान विभूति बनाते है।
वहीं
शास्त्री जी ने भी स्वतंत्रता के पहले गांधीजी के साथ नमक कानून को तोड़ते हुए
दांडी यात्रा की। इस प्रतीकात्मक सन्देश ने पूरे देश में एक तरह की क्रांति ला दी।
लाल बहादुर शास्त्री विह्वल ऊर्जा के साथ स्वतंत्रता के इस संघर्ष में शामिल हो
गए। उन्होंने कई विद्रोही अभियानों का नेतृत्व किया एवं कुल सात वर्षों तक ब्रिटिश
जेलों में रहे। आजादी के इस संघर्ष ने उन्हें पूर्णतः परिपक्व बना दिया।
स्वतंत्र
भारत में शास्त्री जी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के कई विभागों का प्रभार संभाला – रेल मंत्री; परिवहन एवं संचार मंत्री; वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री;
गृह मंत्री एवं नेहरू जी की बीमारी के दौरान बिना विभाग के मंत्री
रहे। एक रेल दुर्घटना, जिसमें कई लोग मारे गए थे, के लिए स्वयं को जिम्मेदार मानते हुए उन्होंने रेल मंत्री के पद से
इस्तीफा दे दिया था। लेकिन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने इस्तीफा स्वीकार नहीं
किया। रेल दुर्घटना पर लंबी बहस का जवाब देते हुए लाल बहादुर शास्त्री ने कहा;
“शायद मेरे लंबाई में छोटे होने एवं नम्र होने के कारण लोगों को
लगता है कि मैं बहुत दृढ नहीं हो पा रहा हूँ। यद्यपि शारीरिक रूप से में मैं मजबूत
नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि मैं आंतरिक रूप से इतना कमजोर भी नहीं हूँ।”
सारे
विश्व के लिए समरसता, सद्भाव, अहिंसा और सत्य की बात करने वाले गांधी जी
भारतीय स्वतंत्रता संगाम के वो चमत्कारिक नायक बने जिनके एक आव्हान पर भारत का
समूचा जनमानस एकत्रित और संगठित रूप में ब्रिटिश शासकों के विरुद्ध खड़ा हो गया
था। गांधी जी ने नस्लभेद मिटाने के साथ हिंदु समाज के अविभाज्य अंग को हरिजन नाम
दिया और हिन्दू-मुस्लिम में एकता स्थापित करने के कई प्रयास भी किए। उन्होंने
चंपारण से स्वाधीनता की बिगुल बजाई और खिलाफत में हिंदू-मुस्लिम की एकता की मिसाल
पेश की वह अद्भुत थी।
वहीं तीस
से अधिक वर्षों तक अपनी समर्पित सेवा के दौरान लाल बहादुर शास्त्री अपनी उदात्त
निष्ठा एवं क्षमता के लिए लोगों के बीच प्रसिद्ध हो गए थे। विनम्र, दृढ, सहिष्णु एवं जबर्दस्त आंतरिक शक्ति वाले शास्त्री जी लोगों के बीच ऐसे
व्यक्ति बनकर उभरे जिन्होंने लोगों की भावनाओं को समझा। वे दूरदर्शी थे जो देश को
प्रगति के मार्ग पर लेकर आये। लाल बहादुर शास्त्री महात्मा गांधी के राजनीतिक
शिक्षाओं से अत्यंत प्रभावित थे। अपने गुरु महात्मा गाँधी के ही लहजे में एक बार
उन्होंने कहा था – “मेहनत प्रार्थना करने के समान है।”
उन्होने ही देश को जय जवान-जय किसान का नारा दिया। महात्मा गांधी के
समान विचार रखने वाले लाल बहादुर शास्त्री भारतीय संस्कृति की श्रेष्ठ पहचान हैं।
2
अक्टूबर 1869 को गांधी जी और 2 अक्टूबर 1904 को लाल बहादुर शास्त्री का जन्म हुआ और
दोनों महामानवों के विचार और वैचारिक दृढ़ता में अद्भूत सामंजस्य था। दोनों ने
भारत को आजादी दिलाने के लिए तन-मन-धन से लोगों को जोड़ा साथ ही स्वावलंबी समाज की
और जन-जन को प्रवृत किया। वहीं नैतिक जीवन जी कर समाज को संदेश दिया जो कि सामान्य
मनुष्य के लिए संभव नहीं होता है। यह वजह रही होगी की उस समय महान वैज्ञानिक
अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी के बारे में बिलकुल सटीक कहा था कि “भविष्य
की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा
कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था।“ वही लाल बहादुर
शास्त्री के बारे में कहा जाता है कि वे “छोटे कद के बड़े
व्यक्ति थे”। दोनों महापुरुषों को सादर नमन...।
-संदीप सृजन
संपादक- शाश्वत सृजन
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