वर्षा पर कुछ दोहे: -

बिन घूंघरु के बूंद ने, छेड़ा रस श्रंगार 


नखरे इस बरसात के ,क्या बतलाए मित्र ।
डरकर स्वागत में धरा, बन जाती है इत्र ।।

कुछ बूंदे आसाड़ की, जगा गई है प्यार ।
आस लगाए सावनी, करे धरा श्रंगार ।।

जाते जाते आम ने,की जामुन से बात।
मित्र मुबारक आपको, सावन की बरसात।।

नर्तन बूंदों कर रही ,बादल देते थाप ।
अवनी का आंगन भरा, सुख के होते जाप।।

आँगन आँगन है खुशी, मिटे सभी संताप।
बरखा बूंदों ने हरे, तन मन के आताप ।।

यौवन नदियों पर चढ़ा, बदली सबकी चाल।
करने को अठखेलिया,नाले भरे उछाल ।।

शहनाई के सुर सभी,मान गये है हार ।
बिन घूंघरु के बूंद ने, छेड़ा रस श्रंगार ।।

तबला भूला थाप को,विस्मित हुई सितार। 
बूंदों के आलाप पर, गूंजा जब मल्हार ।।

धरा, अधर मुस्कान से, हो गई पुरी ग्रीन ।
हर कोई हर्षित लगा, देख रेन का सीन ।।

हर पुलिया को लांघ कर,तटबंधों को तोड़ ।
सागर से मिलने नदी, लगा रही है दौड़ ।।

-संदीप सृजन
ए-99 वी.डी. मार्केट, उज्जैन
मो. 9926061800

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