एक ग़ज़ल
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सिंहासनों की सरपरस्ती देखिये
नुमाईदों की जबरदस्ती देखिये
लोक शासन ने दिया है यह उपहार
रोटी महंगी औ जान सस्ती देखिये
चुनाव हो जाने के बाद दोस्तों
नेताजी को तरसती बस्ती देखिये
बाढ़ आयेगी ओ चली जायेगी
बाद रोती-बिलखती बस्ती देखिये
जुए मे लगते सट्टे के दाव है
खेलो मे हो रही मस्ती देखिये
आँसुओँ को भी मुस्कान में बदल दें
मेरे मालिक की वो हस्ती देखिये
@संदीप सृजन
संपादक -शब्द प्रवाह
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