बतियाने आ जाए धूप

बहुत डर रही है 
बादलों की ओट से 
निकली धूप

ठंडी हवाओं के बीच
ठिठुरते हुए
सिकुड़ी है धूप

छत हो या आंगन
सहम-सहम कर 
आ-जा रही है धूप

अपने तेज से 
सेक नहीं पा रही है
खुद को धूप

आओ घर के बाहर बैठे
कुछ बतियाए हम
शायद हमको देख
बतियाने आ जाए धूप

-संदीप सृजन
संपादक- शाश्वत सृजन
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